शानदार JS 80-21 सोयाबीन का बीज, पैदावार के साथ होगा अधिक मुनाफ़ा ।

शानदार JS 80-21 सोयाबीन का बीज, इस साल किसानो को करेगा माला- माल  

सोयाबीन की अच्छी फसल पैदा करने एवं किसानों को अच्छे मुनाफा के लिए यह जरूर जानना चाहिए कि कौन सा बीज किसानों को अच्छे भाव से मुनाफा दिला सकता हैं। सोयाबीन की खेती तिलहनी फसलों में आती है। सोयाबीन की खेती हमारे देश के कई सारे राज्यों में कि जाती है, परंतु सोयाबीन की खेती की प्रमुखता मध्य प्रदेश को दी जाती है, इसके अलावा महाराष्ट्र और राजस्थान में होती है।

JS 80-21 सोयाबीन

तो आइए आज हम किसानों को सोयाबीन के अच्छी फसल के लिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी इस आर्टिकल के जरिए देने वाले हैं जेएस 80-21 सोयाबीन, जेएस 80-21 सोयाबीन की खेती करने का समय, उन्नत किस्म सोयाबीन की, सोयाबीन की बुवाई के लिए पर्याप्त बीज मात्रा, सोयाबीन फसल की सिंचाई, सोयाबीन की फसल की कटाई का समय और अन्य विषयो के बारे में जानकारी लेने के लिए आप लेख के अंत में तक बने रहें ताकि लेख में दी गई पूरी जानकारी विस्तार से समझ में आ सकें।

जेएस 80-21 सोयाबीन –

  • किस्म का नाम- जेएस 80-21
  • फसल की अवधि- 105-110 दिन।
  • फसल की उपज- 25-30 (क्विं. प्रति हे.)
  • फसलों का मौसम- खरीफ का मौसम। ( यह गर्मी के समय का बीज नहीं है )

जेएस 80-21 सोयाबीन की खेती करने का समय

सोयाबीन की खेती कि बुवाई की प्रमुखता खरीफ के मौसम को दिया गया है इसे जून का महीना भी कहते हैं। परंतु ऐसा भी माना जाता है कि सोयाबीन की बुवाई का सर्वोत्तम समय जून महीने के तीसरे सप्ताह में होनी चाहिए।

सोयाबीन की खेती में अधिक पानी या सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। पूरे फसल में 2 से 3 सिंचाई होती है। 26-32 डिग्री सेल्सियस सोयाबीन की खेती के लिए उचित तापमान माना जाता है। यह फसल अधिक पैदावार अच्छी दोमट मिट्टी में किया जा सकता है, क्योंकि इस मिट्टी में जल का अधिक निकास होता है।

उन्नत किस्में सोयाबीन की –

चार सोयाबीन किस्मों का विकास भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान ने किया है। जैसे- एनआरसी- 2 (अहिल्या1),एनआरसी -7(अहिल्या 3) ,एनआरसी- 12(अहिल्या2) ,एनआरसी- 37,(अहिल्या 4), सोयाबीन अनुसंधान संसाधन ने इसके अलावा भी कई सारी किस्मो को बताया है, जेएस 93-05, जेएस 80-21, जेएस 335, जेएस95-60, पंजाब 1, आदि उच्चतम बीज के रूप में एक विकसित किया है।

इसके अलावा भारतीय वैज्ञानिकों ने एक नई बीज एम. ए. सी. एस. 1407 अधिक उपज देने वाली बीज बताकर विकसित किया है। इस सोयाबीन के बीज से उपज में 17% की बढ़ोतरी हो सकती है। इसमें अच्छी खेती होने पर प्रति हेक्टेयर 39 क्विंटल पैदावार किया जा सकता है और 19.81 प्रतिशत इस बीच में तेल की मात्रा भी है।

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सोयाबीन की बुवाई के लिए पर्याप्त बीज मात्रा–

किसानों को हमेशा सोयाबीन की बुवाई के लिए प्रमाणिक बीज का ही उपयोग करना चाहिए, अगर आप खेतों में पुरानी बीज की बुवाई कर रहे हैं, तो सबसे पहले उसे उपचारित कर लेना चाहिए।

किसानों को हमेशा सोयाबीन की खेती करने के लिए 80-90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कि दर से सोयाबीन के बड़े  दाने वाले प्रजातियों के हिसाब से बीज का निर्धारण करना चाहिए। और छोटे दाने वाले प्रजातियों के हिसाब से 60-70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कि दर रखना चाहिए।

सोयाबीन की खेती करने के लिए किसानों को हमेशा पंक्तियों में ही बुवाई करनी चाहिए जिससे फसल की निराई करने में आसानी हो।

सोयाबीन की बुवाई का तरीका –

सोयाबीन पंक्तियों में बोई जाने वाली फसल है। अधिकतर किसान सोयाबीन की बुवाई क्यारियां बना कर ही करते है ताकि फसल से घास की सफाई या निराई आसानी से की जा सके। सोयाबीन की बुवाई करते समय प्रत्येक बीज की दूरी 45 सेंटीमीटर से 65 सेमी तक होनी चाहिए। सोयाबीन की उपज को बढ़ाने के लिए ब्राड बैड अर्थात् बी.बी.एफ पद्धति का इस्तेमाल भी किया जाता है। 

इस पद्धति में सोयाबीन की बुवाई कतारों में ऊंची मेडियां बनाकर की जाती है और प्रत्येक दो कतारों के बाद एक गहरी नाली बना दी जाती है। इन नालियों के जरिए अधिक वर्षा के दौरान जल की निकासी हो जाती है और ऊंची मेड पर बोई गई फसल बिल्कुल सुरक्षित रहती है।

सोयाबीन की खेती में इन गहरी और चौड़ी नालियों का ज्यादा फायदा जल संचय में भी मिलता है। क्योंकि कम वर्षा वाली जगह पर सोयाबीन फसल की सिंचाई के लिए इन नालियों में जल को सुरक्षित संचित कर लिया जाता है।

सोयाबीन की फसल में इस्तेमाल किए जाने वाले उर्वरक-

सोयाबीन की खेती करते समय उर्वरक का इस्तेमाल सही मृदा परीक्षण के आधार पर होना चाहिए। सही मृदा परीक्षण के बाद ही आवश्यकता अनुसार उर्वरक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। कंपोस्ट खाद, गोबर खाद, और नाडेप जैविक खाद का इस्तेमाल करके सोयाबीन की फसल में उपज को बढ़ाया जा सकता है। 

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इन जैविक खादों को 10 से 20 टन प्रति हेक्टेयर भूमि की दर से देना चाहिए। और रासायनिक ऊर्वरक सोयाबीन की फसल के अंकुरण के बाद नाइट्रोजन की मात्रा संतुलित बनाए रखने के लिए आवश्यकता के अनुसार यूरिया का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए। 

इसके अलावा फसल को कीटों और जानवरों से बचने के लिए 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट का इस्तेमाल भी करना चाहिए।

सोयाबीन फसल की सिंचाई –

सोयाबीन की फसल में सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती है। इस फसल की सिंचाई करते हुए इतना ध्यान देना चाहिए कि खेतों में जल का भराव नहीं रहना चाहिए अधिकांश बारिश के मौसम में, खेतों में अधिक जल भराव से खेती बिगड़ सकती है।

सोयाबीन की फसल कटाई का समय –

सोयाबीन की फसल उसकी किस्म पर निर्भर करता है कि वह कितने दिन में पकता है, संभवत यह फसल 90-145 दिनों में पकता है। सोयाबीन की फसल की कटाई का समय तब होता है जब उसकी पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और सोयाबीन की फली सूख जाती है। सोयाबीन की बीजों में 15% नमी की मात्रा रहने पर ही बीजों की कटाई होती है।

निष्कर्ष

जेएस 80-21 सोयाबीन, के बारे में अपने विस्तार से पूरी जानकारी प्राप्त की है यदि आज का लेख आप सभी लोगों के लिए महत्वपूर्ण साबित होता है तो आप इस लेख को सोशल मीडिया पर शेयर करें साथ ही उन सभी किसान भाइयों को यह लेख शेयर करें जो लोग इस वर्ष सोयाबीन की खेती करने वाले हैं। लेख से संबंधित आपको किसी भी प्रकार की समस्या लगती है या फिर आपको खेती से संबंधित अन्य प्रकार की जानकारी चाहिए तो कमेंट बॉक्स का उपयोग करना बिल्कुल भी ना भूले।

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जय जवान – जय किसान

 

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